मुस्लिम तलाकशुदा महिलाएं भी अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं. दरअसल 10 जुलाई को Supreme Court ने इस बारे में अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि आईपीसी की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिलाएं भी भरण-पोषण के लिए याचिका दायर कर सकती हैं. जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने साफ लफ्जों मे कहा कि मुस्लिम महिला ही नहीं, किसी भी धर्म की महिला भरण पोषण की अधिकारी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 125 के तहत महिला मेंटेनेंस का केस पति पर डाल सकती है. इसमें धर्म रुकावट नहीं है.
जाने क्या है पूरा मामला?
दरअसल अदालत ने जिस मामले में यह फैसला सुनाया है, वह तेलंगाना से जुड़ा है. इस मामले में याचिकाकर्ता को प्रति माह 20 हजार रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था.
याचिकाकर्ता मुस्लिम महिला ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दाखिल कर अपने पति से गुजारा भत्ते की मांग की थी.
पर इस फैसले को हाई कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि दंपति ने 2017 में मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक ले लिया था. परिवार अदालत के फैसले को महिला के पति मोहम्मद अब्दुल समद ने हाई कोर्ट में चुनौती दी.
पति की याचिका पर हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता को संशोधित कर 10 हजार रुपये प्रति माह कर दिया.
और पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि CrPC की धारा 125 के तहत याचिका लंबित रहने के दौरान कोई मुस्लिम महिला तलाकशुदा है, तो वो मुस्लिम महिला अधिनियम 2019 का भी सहारा ले सकती है.
पीठ ने कहा कि 2019 अधिनियम के तहत किया गया उपाय, CrPC की धारा 125 के तहत किए गए उपाय के अतिरिक्त है. अब देखना होगा इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं मे क्या संदेश पाहुचता है.