Ravish Kumar writes letter to Prime Minister in favor of MJ Akbar enthusiasm in IT cell

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी,

भारत में 96-100 रुपये लीटर पेट्रोल बिक रहा है। इस ख़ुशी में यह पत्र नहीं लिख रहा हूं। बल्कि पत्र लिखने की ख़ुशी दूसरी है। आज प्रात: जब नींद को विदा किया तो ट्विटर पर प्रिया रमानी का हंसता हुआ चेहरा देखा।

मुझे लगा कि नींद कोई ख़्वाब छोड़ कर गई है। ख़्वाब नहीं वो ख़बर थी। आपने जिन एम जे अकबर को विदेश राज्य मंत्री बनाया था, उनकी कोर्ट में हार हुई है। मुझे याद है अकबर के साथ काम करने वाली 15 महिला पत्रकारों ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे।

आरोप लगाने के 9 दिन तक आप चुप रहे। उसके बाद भी शायद नहीं बोले। अकबर ने ख़ुद से इस्तीफ़ा दिया।आप अकबर को बर्ख़ास्त करने का मौक़ा चूक गए। अकबर बीजेपी में बने रहे और राज्य सभा के सदस्य भी।

यह पत्र मैं अकबर को बीजेपी से निकालने के लिए नहीं लिख रहा हूं। बल्कि इस वक्त में जब भारत की बेहतरीन महिला पत्रकार अपनी जीत का जश्न मना रही हैं, मैं रवीश कुमार अक्खा इंडिया में अकेला प्रो-अकबर पत्र लिख रहा हूं। ऐसा पत्र अक्षय कुमार नहीं लिख सकता है।

मैं चाहता हूं कि आप अकबर को बीजेपी में ही रखें। मध्य प्रदेश से ही दोबारा राज्य सभा भेजें। मंत्री भी बनाएं। प्रिया रमानी पर मानहानि का मुकदमा करने के बाद अकबर ओपन नाम की अंग्रेज़ी पत्रिका में आपके मान-सम्मान को बढ़ाने के लिए कॉलम लिखते रहे हैं।

उनकी अंग्रेज़ी अच्छी है।इसलिए भी मैं अकबर की पैरवी कर रहा हूं ताकि अच्छी अंग्रेज़ी में छपने वाली पत्रिकाओं में आपकी और पार्टी की छवि की निखार के लिए अकबर उपयोगी साबित हो सकें। मैं कभी छोटा नहीं सोचता।

इतिहास विचित्र संयोग पैदा करता है। अकबर का नाम लिए न जाने कितने लोग उस अकबर की छवि से टकराते हुए अकबर होने का भरम पालते होंगे, उसके जैसा न होने पर टूट जाते होंगे, बिखर जाते होंगे या यह भी मुमकिन है कि उस अकबर के नाम के कारण संवर भी जाते होंगे।

आप समझ गए होंगे कि मैं जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की बात कर रहा हूं। दरअसल यह पत्र भी जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर को मोबाशर जावेद अकबर के नाम और काम से बचाने के लिए लिख रहा हूं। ताकि इस मोबाशर जावेद अकबर के कारण उस जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का जलाल कम न हो।

दुनिया को फ़र्क़ पता चले कि बीजेपी के अकबर और जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर दो अलग अलग शख़्स हैं। मुझे यकीन है आप उस अकबर के साथ इंसाफ़ करेंगे। भले ही आप इस अकबर के मामले में इंसाफ़ करने से चूक गए।

आप मोबशर जावेद अकबर को बीजेपी में रखें। सरकार में ओहदा दें।ताकि दुनिया जाने कि विश्व गुरु भारत में ऐसे लोगों को भी राज्य सभा मिलता है, जो अपने संपादकी में काम करने वाली महिला पत्रकारों का यौन शोषण करते हैं।

वैसे भी आप जो करते हैं सोच समझ कर और सही ही करते हैं। यही नहीं आई टी सेल और अपने मंत्रियों से कहें कि अकबर का बचाव करें। इस अकबर के नाम की सड़कें बनवाएं। स्टेडियम बनवाएं। बंगाल चुनाव में भेजें क्योंकि बांग्ला अच्छा बोलते हैं।

अपने राजनीतिक जीवन के स्वर्ण युग में कोई मन का काम न करे तो मन की बात जमती नहीं है। इसलिए मैं प्रो-अकबर आपके साथ खड़ा हूं। अकबर का आपके पास रहना ज़रुरी है।

मेरे आलोचक कहेंगे कि बेटी बचाओ का नारा(केवल नारा ही) तो आपका है। तो फिर बेटियों को बचाने के लिए अकबर को निकालने की बात क्यों नहीं की? मैंने प्रिया रमानी और वकील रेबेका जॉन की तस्वीरें देखीं।

फिर बहुत सी बेहतरीन महिला पत्रकारों के टाइम लाइन पर जाकर उनकी तस्वीरें देखीं। सब मारे ख़ुशी के झूम रही थीं। ऐसा लगा उनके जीवन में बसंत आज आया हो। आज पहली बार नौरोज़ मना रही हों।

बीती रात सपने में नीम के पेड़ ने दर्शन दिया और मुझे कहा कि भारत की बेटियां ख़ुद को बचा लेंगी, बस प्रधानमंत्री मोदी किसी तरह मोबाशर जावेद अकबर को बचा लें। सरकार में मंत्री बना दें। तो मैंने पत्र लिख दिया।

अकबर पहले की हुकूमतों के दौर में भी था। उसकी महफिलें थीं। उसके किस्से थे। उसकी अंग्रेज़ी थी। मैं नहीं जानता कि उसकी सोहबतों में आने वाले लोग अकबर के इस किस्से को जानते थे या नहीं।

कौन लोग थे जो अकबर को बचा रहे थे और बदले में अकबर किसे बचा रहा था। यह सब इतिहास के सवाल हैं। आप अपनी ED भेज कर पता करवा सकते हैं। वैसे भी एक दो दिन से ED की टीम कहीं गई नहीं है।

मेरी एक दूसरी मांग यह है कि दूरदर्शन पर मुग़ल-ए-आज़म का प्रसारण होना चाहिए। ताकि दुनिया जान सके कि जो अकबर अपनी सल्तनत की झूठी शान के फेर में अनारकली के साथ इंसाफ़ न कर सका उसके हमनाम अकबर के मामले में एक शानदार जज रविंद्र पांडे ने प्रिया रमानी का इंसाफ़ कर दिया।

इंसाफ़ करने के लिए बादशाह होना ज़रूरी नहीं होता है। इंसाफ़ करने वाला अकबर होता है। अकबर का नाम रखने वाला अकबर नहीं होता है।

रवीश कुमार
दुनिया का पहला ज़ीरो टीआरपी एंकर

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