कहा जाता है जब तक सिराजुद्दौला ज़िंदा रहे अग्रेंज़ों की रुह उनके क़हर से कांपती थी.
इतिहास अपने अंदर कई अच्छे तो कई भयानक राज़ समेटे हुए है. इसमें राजाओं की वीरता और साहस तो है ही लेकिन कुछ ऐसे राजा भी थे जिनके साहस के आगे अंग्रेज़ कांपते थे. इन्हीं में से एक बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला थे,
कहा जाता है जब तक सिराजुद्दौला ज़िंदा रहे अग्रेंज़ों की रुह उनके क़हर से कांपती थी. इसकी ग़वाह है ‘ब्लैक होल ऑफ़ कलकत्ता’ की वो ख़ौफ़नाक घटना जो कोलकाता के ‘फ़ोर्ट विलियम’ के एक छोटे से कमरे में दफ़न है. दरअसल हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर बने फ़ोर्ट विलियम को ब्रिटिश राज के दौरान इंग्लैंड के राजा विलियम तृतीय के नाम पर बनवाया गया था.
दरअसल फ़ोर्ट विलियम में एक 18 फ़ीट लंबा और 14 फ़ीट चौड़ा एक कमरा बनवाया गया, जिसमें दो बहुत छोटे रोशनदान थे, जिसके चलते उस कमरे का नाम ‘ब्लैक होल’ रखा गया. इस कमरे को अंग्रेज़ों ने अपराधियों को सज़ा देने के लिए बनवाया था, मगर वो क्या जानते थे, कि ये उन्हीं की क़ब्र में तब्दील हो जाएगा.
क़िले के बनने के बाद अंग्रेज़ो ने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाना शुरू कर दिया. इस बात का पता जब नवाब सिराजुद्दौला को चला तो उन्होंने अंग्रेज़ों को ऐसा न करने के लिए आगाह किया, लेकिन अंग्रज़ों ने नवाब की बात को हवा में उड़ा दिया.
इस बात से गुस्सा हो कर नवाब ने 5 जून 1756 को एक बहुत बड़ी सेना के साथ फ़ोर्ट विलियम पर हमला करने की तैयारी कर ली. अंग्रेज़ों को परास्त कर नवाब ने 20 जून को उसी ‘ब्लैक होल’ में 146 अंग्रेज़ों को बंदी बना लिया.
इसके बाद जब 23 जून, 1756 को कमरा खोला गया तो केवल 23 लोग ही ज़िंदा थे, बाकि 123 लोग मर चुके थे. ज़िंदा बचे लोगों में अंग्रेज़ कमांडर जॉन जेड हॉलवेल भी शामिल था. इन लोगों के भी मरने पर इन्हें वहीं एक गड्ढा खोद कर दफ़न कर दिया गया.
आज इस जगह पर ‘ब्लैक होल मेमोरियल है’. और आपको बता दें, फ़ोर्ट विलियम फ़िलहाल थल सेना के पूर्वी कमान का मुख्यालय है.