मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यूपी पुलिस की ख़बरों की फाइल मंगा कर पढ़नी चाहिए। ये हम इस लिए बोल रहे है क्यूंकी पुलिस का एक काम पुलिस के भीतर के अपराधी तत्वों को पकड़ना भी हो गया है। यही नहीं अपराध में लिप्त पुलिसवालों को बचाना भी एक काम है।
इससे पता चल रहा है कि यूपी पुलिस के भीतर बहुत कुछ सड़ गया है। योगी अपने भाषणों में माफिया अंत की बात करते हैं, लेकिन जनता को पता है कि माफिया का वही एक रुप नहीं है जिसकी तरफ़ राजनीतिक इशारा करते हैं।
तरह तरह के माफिया समाज से लेकर सिस्टम तक में व्याप्त है। पुलिस को भी अपने भीतर सुधार लाने की ज़रूरत है। वरना ये नौकरी उनके लिए भी कष्टकारी हो जाएगी। कोई निलंबित हो रहा होगा तो कोई बर्ख़ास्त।
कोई जेल जा रहा होगा तो कोई आपस में एक दूसरे का एनकाउंटर कर रहा होगा। इसके लिए पुलिस के लोगों को सोचना होगा कि क्या वे ऐसी ज़िंदगी जीना चाहते हैं? जी रहे हैं और मज़ा भी आ रहा है लेकिन क्या उन्हें पता है कि अपराध के बिना जीवन कैसा होता है? एक बार इसे भी आज़मा लें। ठीक है कि समाज ऐसा है।
कोई दूध का धुला नहीं है लेकिन क्या इसे आदर्श जीवन कहा जा सकता है? पुलिस राजनीतिक हो गई है। जब वह राजनीतिक हो सकती है तो अपने लिए दैनिक कमाई भी करेगी। बिहार में पुलिस भी शराब माफिया हो गई है। बीजेपी ही आरोप लगा रही है कि पुलिस शराब के धंधे में शामिल हो गई है।
इस साल जनवरी में राकेश कुमार सिन्हा, पुलिस अधीक्षक( प्रतिबंध) ने सभी एस पी को पत्र लिखा था कि शराब के धंधे में लिप्त पुलिस और एक्साइज़ विभाग के अफ़सर और कर्मचारी ख़ूब कमी रहे हैं। इनकी संपत्ति की जाँच होनी चाहिए।
राकेश कुमार सिन्हा का तबादला हो गया। जनवरी में सिन्हा पर कार्रवाई हो गई और जब नवंबर में ज़हरीली शराब पीने से 32 से अधिक लोगों की मौत हुई तब बीजेपी ही आरोप लगा रही है कि पुलिस शराब के अवैध धंधे में शामिल है।
इस तरह की भ्रष्ट पुलिस किसी के लिए हितकर नहीं होती है। अगर आप ऐसी पुलिस व्यवस्था को सपोर्ट करेंगे तो ख़ुद को ही असुरक्षित करेंगे।