भारतीय सिनेमा के (legendary actor प्राण साहब का जन्म 12 फरवरी , 1920 को दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में हुआ। चरित्र अभिनेता के अत्यंत गौरवपूर्ण करियर से पहले वे सिनेमा के पर्दे पर खलनायकी के कीर्तिमान बन चुके थे। उन्हीं से भारतीय सिनेमा में खलनायक की पहचान बनी।
कोई भी उनकी बराबरी नहीं कर पाता था , जिस तरह से वे अपनी भृकुटी बनाते थे , अपने मुंह से सिगरेट के धुएं के छल्ले निकालते थे और संवाद अदायगी का सख्त अंदाज जो दर्शकों में सिहरन पैदा कर देता था । उनके खलनायकी का स्तर इस तरह बुलंद था की भारत में मां-बाप ने अपने बच्चों का नाम “प्राण” रखना बंद कर दिया जब प्राण साहब अपने खलनायकी दौड़ के शीर्ष पर थे (1950 और 1960 के दशकों में)।
बॉलीवुड को बुरे किरदार प्राण साहब ने ही दिए थे। अगर प्राण साहब न होते , तो उनके बाद के आने वाले Villains के लिए Filmy Villainy के standards सेट ही नहीं होते। जिस तरह हजारों दशकों बाद भी किसी बच्चे का नाम “रावण” नहीं रखा जाता , उसी तरह भारतीय स्वाधीनता के 7 दशकों के बाद भी किसी बच्चे का नाम “प्राण” नहीं रखा जाता। “खलनायक” (Villain) का पर्यायवाची शब्द “प्राण” बन गया।
खलनायक के तौर पर दिलिप कुमार के साथ उनकी प्रसिद्ध फिल्में हैं : देवदास (1955), आजाद (1955), मधुमति (1958) , दिल दिया दर्द लिया (1966) और राम और श्याम (1967) ; राज कपूर के साथ जिस देश में गंगा बहती है (1960) ; देव आनंद के साथ जिद्दी (1948) , मुनिमजी (1955), जब प्यार किसी से होता है (1961), ये गुलिस्तां हमारा (1972) , इत्यादि।
1969-1982 के दौरान प्राण साहब चरित्र अभिनेता के रूप में अपने करियर के शीर्ष पर थे। एक के बाद एक फिल्में आती रहीं , सफलता प्राण साहब के कदम चूमती रहीं। इस दौर में इन्होंने मनोज कुमार, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, ऋषी कपूर जैसे प्रमुख नायकों के समर्पित प्रशंसकों की तरह उनके भी प्रशंसक थे।
उस दौड़ में चरित्र अभिनेता के रूप में उनकी उपस्थिति फिल्म के हिट होने की लगभग गारंटी होती थी। अपने दमदार अभिनय से वे सारे फिल्मों में “प्राण” फूंक देते थे अथार्थ जान डाल देते थे। प्राण साहब फिल्मों के “प्राण” थे।
चरित्र अभिनेता के तौर पर उनकी प्रसिद्ध फिल्में हैं : गुमनाम (1965), पत्थर के सनम (1967), उपकार (1967), ब्रह्मचारी (1968), विक्टोरिया नंबर 203 (1972), जंजीर (1973) , बॉबी (1973), मजबूर (1974), कसौटी (1974), अमर अकबर एंथोनी (1977), डॉन (1978), कर्ज (1980), क्रोधी (1981), कालिया (1981), शराबी (1984) , इत्यादि।
“शताब्दी का महाखलनायक” (Villain of the Millennium) – इस महानायक ने हिंदी सिनेमा में छह: दशकों से भी ज्यादा, की लंबी पारी खेली है। इस अवधि में उन्होंने 350 से भी अधिक फिल्मों में काम किया। वे फिल्म उद्योग के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और सम्मानीय अभिनेताओं में से हैं।
कला के छेत्र में असाधारण सेवा के लिए 2001 में भारत सरकार ने प्राण साहब को “पद्म भूषण” (Padma Bhushan) की उपाधि प्रदान की। अन्य कई पुरस्कारों के साथ महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार इत्यादि से उन्हें नवाजा गया।
2000 में उन्हें “Villain of the Millennium” ( शताब्दी का महाखलनायक ) का खिताब दिया गया। 2013 में भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान – दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड देकर उन्हें सम्मानित किया।
12 जुलाई 2013 को 93 वर्ष की उम्र में इन्होंने अंतिम सांस लिया। प्राण साहब अपने करोड़ों प्रशंसकों के दिल में सदैव जीवित रहेंगे। सिनेमा सामग्री और तकनीक दोनों में बदल सकता है। लेकिन भारतीय सिनेमा में प्राण साहब के असीम योगदान को कोई नहीं छीन सकता।