ravish kumar write an open letter on death of rohit sardana

आज तक के एंकर रोहित सरदाना के निधन की ख़बर से स्तब्ध हूँ। कभी मिला नहीं लेकिन टीवी पर देख कर ही अंदाज़ा होता रहा कि शारीरिक रुप से फ़िट नौजवान हैं। मैं अभी भी सोच रहा हूँ कि इतने फ़िट इंसान के साथ ऐसी स्थिति क्यों आई। डॉक्टरों ने किस स्तर पर क्या दवा दी? उनके बुख़ार या अन्य लक्षणों पर किस तरह से मॉनिटर किया गया ?

मेरा मन नहीं मान रहा। मैं नहीं कहना चाहूँगा कि लापरवाही हुई होगी। मगर कुछ चूक हो सकती है। यह सवाल मैं केवल रोहित के लिए नहीं कर रहा हूँ, मैं अब भी इस सवाल से जूझ रहा हूँ कि घरेलु स्तर पर डॉक्टर लोग क्या इलाज कर रहे हैं जिससे मरीज़ इतनी बड़ी संख्या में अस्पताल जा रहे हैं और वहाँ भी स्थिति बिगड़ रही है।

इसे लेकर एक लंबा सा पोस्ट भी लिखा था। इस सवाल का उत्तर खोज रहा हूँ। कई जगहों से डाक्टरों के बनाए व्हाट्स एप फार्वर्ड आ जा रहे हैं। जिनमें कई दवाओं के नाम होते हैं। मैं डाक्टर नहीं हूँ। लेकिन कोविड से गुज़रते हुए जो ख़ुद अनुभव किया है कि उससे लगता है कि डाक्टर सही समय पर ज़रूरी दवा नहीं दे रहे हैं। व्हाट्एस फार्वर्ड और कई डॉक्टरों की पर्ची देख कर एक अंदाज़ा होता है कि सही दवा तो लिखी ही नहीं गई है।

इसलिए मैंने एक कमांड सेंटर बनाने का सुझाव दिया था जहां देश भर से रैंडम प्रेसक्रिप्शन और मरीज़ के बुख़ार के डिटेल को लेकर अध्ययन किया जाता और अगर इस दौरान कोई चूक हो रही है तो उसे ठीक किया जाता। मैं रोहित के निधन से स्तब्धता के बीच इन सवालों से अपना ध्यान नहीं हटा पा रहा हूँ।

बात भरोसे के डाक्टर की नहीं है और न नहीं डाक्टर के अच्छे बुरे की है। बात है इस सवाल का जवाब खोजने की कि क्यों इतनी बड़ी संख्या में मरीज़ों को अस्पताल जाने की नौबत आ रही है?

कई लोग लिख रहे हैं कि आज तक ने रोहित सरदाना के निधन की ख़बर की पट्टी तुरंत नहीं चलाई। मेरे ख़्याल से इस विषय को महत्व नहीं देना चाहिए। आप सोचिए जिस न्यूज़ रूम में यह ख़बर पहुँची होगी, बम की तरह धमाका हुआ होगा।

उनके सहयोगी साथी सबके होश उड़ गए होंगे। सबके हाथ-पांव काँप रहे होंगे। आप बस यही कल्पना कर लीजिए तो बात समझ आ जाएगी। दूसरा, यह भी मुमकिन है कि रोहित के परिवार में कई बुजुर्ग हों। उन्हें सूचना अपने समय के हिसाब से दी जानी है। अगर आप उसे न्यूज़ चैनल के ज़रिए ब्रेक कर देंगे तो उनके परिवार पर क्या गुज़रेगी।

तो कई बार ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं। इसके अलावा और कोई बात हो तो वहाँ न्यूज़ रूम में खड़े उनके सहयोगी सच का सामना कर रही रहे होंगे। बात भले बाहर न आए, उनकी आँखों के सामने से तो गुज़र ही रही होगी।

ख़बर बहुत दुखद है। कोविड के दौरान कई पत्रकारों की जान चली गई। सूचना प्रसारण मंत्रालय उन पत्रकारों के बारे में कभी ट्विट नहीं करता। आप बताइये कि कितने पत्रकार देश भर में मर गए, सूचना प्रसारण मंत्री ने उन्हें लेकर कुछ कहा। उन्हें हर वक़्त प्रधानमंत्री की छवि चमकाने से फ़ुरसत नहीं है। इस देश में एक ही काम है।

लोग मर जाएँ लेकिन मोदी जी की छवि चमकती रहे। आप लोग भी अपने घर में मोदी जी के बीस बीस फ़ोटो लगा लें। रोज़ साफ़ करते रहें ताकि उनका फ़ोटो चमकता रहे। उसे ट्वीट कीजिए ताकि उन्हें कुछ सुकून हो सके कि मेरी छवि घर घर में चमकाई जा रही है।

आम लोगों की भी जान चली गई । प्रभावशाली लोगों को अस्पताल नहीं मिला। आक्सीजन नहीं मिला। वेंटिलेटर बेड नहीं मिला। आप मानें या न मानें इस सरकार ने सबको फँसा दिया है। आप इनकी चुनावी जीत की घंटी गले में बांध कर घूमते रहिए।

कमेंट बाक्स में आकर मुझे गाली देते रहिए लेकिन इससे सच नहीं बदल जाता है। लिखने पर केस कर देने और पुलिस भेज देने की नौबत इसलिए आ रही है कि सच भयावह रुप ले चुका है। जो लोग इस तरह की कार्रवाई के साथ हैं वो इंसानियत के साथ नहीं हैं।

इस देश को झूठ से बचाइये। ख़ुद को झूठ से बचाइये। जब तक आप झूठ से बाहर नहीं आएँगे लोगों की जान नहीं बचा पाएँगे। अब देर से भी देर हो चुकी है। धर्म हमेशा राजनीति का सत्यानाश कर देता है और उससे बने राजनीतिक समाज का भी।

ऐसे राजनीतिक धार्मिक समाज में तर्क और तथ्य को समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इसलिए व्हाट्एस ग्रुप में रिश्तेदार अब भी सरकार का बचाव कर रहे हैं। जबकि उन्हें सवाल करना चाहिए था। अगर वे समर्थक होकर दबाव बनाते तो सरकार कुछ करने के लिए मजबूर होती।

अब भी सरकार की तरफ़ से फोटोबाज़ी हो रही है। अगर उससे किसी की जान बच जाती है तो मुझे बता दीजिए। जान नहीं बची। आँकड़ों को छिपा लीजिए। मत छापिए। मत छपने दीजिए। बहुत बहादुरी का काम है। बधाई।

आप सबको डरा देते हैं और सब आपसे डर जाते हैं। कितनी अच्छी खूबी है सरकार की। घर- घर में लोगों की जान गई है वो जानते हैं कि कब कौन और कैसे मरा है।

रोहित सरदाना को श्रद्धांजलि। उनके परिवार के बारे में सोच रहा हूँ। कैसे उबरेगा इस हादसे और ऐसे हादसे से भला कौन उबर पाता है। भारत सरकार से माँग करूँगा कि रोहित के परिवार को पाँच करोड़ का चेक दे और वो भी तुरंत ताकि उसके परिवार को किसी तरह की दिक़्क़त न आए।सरकार को पत्रकारों की मदद करने में पीछे नहीं हटना चाहिए।

बिल्कुल दूसरे पत्रकारों को भी दे। कम से कम इसी बहाने इस बात की शुरूआतें होनी चाहिए कि जिन पत्रकारों की कोविड से मौत हुई है उनके लिए सरकार क्या सोच रही है। आज तक में रोहित के सहयोगियों को इस दुखद ख़बर को सहने की ताक़त मिले।

source रवीश कुमार

नोट- जो लोग रोहित के निधन पर अनाप-शनाप कहीं भी लिख रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि फ़र्ज़ इंसान होने का है। और यह फ़र्ज़ किसी शर्त पर आधारित नहीं है। तो इंसान बनिए। अभी भाषा में मानवता और इंसानियत लाइये। इतनी सी बात अगर नहीं समझ सकते तो अफ़सोस।

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