achievements of cds general bipin rawat

नहीं रहे भारतीय सेना के शेर जनरल बिपिन सिंह रावत. भारतीय सेना के जांबाज़ ऑफ़िसरों में से एक ‘चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़’ General Bipin Rawat दुःखद निधन हो गया है. तमिलनाडु के कुन्नूर में भारतीय सेना के हेलिकॉप्टर हादसे में जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत सभी 14 लोगों की मौत हो गई है.

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कौन थे जनरल रावत?

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जनरल रावत का जन्म 16 मार्च, 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले के सैंज गांव में हुआ था. उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी भारतीय सेना में लेफ़्टिनेंट जनरल रह चुके हैं. रावत फ़ैमिली पांच पीढ़ियों से भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रही है. बिपिन रावत ने देहरादून के ‘कैम्ब्रियन हॉल स्कूल’ और शिमला के ‘सेंट एडवर्ड स्कूल’ से पढ़ाई की थी.

इसके बाद उन्होंने खडकवासला स्थित ‘नेशनल डिफ़ेंस अकेडमी’ और फिर देहरादून स्थित ‘इंडियन मिलेट्री अकेडमी’ में प्रवेश लिया. इस दौरान उन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर’ से भी सम्मानित किया गया था.

जनरल रावत का सैन्य करियर

देहरादून के ‘इंडियन मिलेट्री अकेडमी’ से पास आउट होने के बाद बिपिन रावत को 16 दिसंबर 1978 को भारतीय सेना की ’11 गोरखा राइफल्स’ की ‘5वीं बटालियन’ में सेकंड लेफ्टिनेंट के तौर पर नियुक्त किया गया था, जो उनके पिता की यूनिट भी थी.

बिपिन रावत को High-Altitude Warfare में महारत हासिल थी. अपने सैन्य कार्यकाल के दौरान उन्होंने 10 सालों तक कई ‘आतंकवाद विरोधी अभियानों’ को भी सफलतापूर्वक अंजाम दिया था.

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कब बने भारतीय सेना के चीफ़? 

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बिपिन रावत ने 1 जनवरी 2016 को सेना कमांडर ग्रेड में पदोन्नत होने के बाद Southern Command के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-इन-सी) का पद ग्रहण किया था. 8 महीने बाद ही 1 सितंबर, 2016 को वो थल सेना के उप प्रमुख बन गये.

इसके 4 महीने बाद ही बिपिन रावत भारतीय सेना के 27वें चीफ़ बन गये. इस दौरान वो 31 दिसंबर 2016 से 31 दिसंबर 2019 तक भारतीय सेना के चीफ़ रहे. इसके बाद 1 जनवरी 2020 को वो भारत के पहले ‘चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़’ (सीडीएस) बने.

बिपिन रावत के अचीवमेंट्स

जनरल बिपिन रावत भारतीय सेना के सबसे डेडिकेटेड ऑफ़ीसरों में से एक रहे हैं. उन्हें नेतृत्व क्षमता के साथ ही ‘युद्ध कौशल’ में महारत हासिल थी. सन 1987 में बिपिन रावत की बटालियन ने ‘Chu Valley’ के Sumdorong इलाक़े में चीनी सेना को मुहतोड़ जवाब दिया था.

इसके बाद रावत ने कांगो में ‘संयुक्त राष्ट्र मिशन’ में भी अहम भूमिका निभाई थी. इसके बाद साल 2015 में हुये ‘Myanmar Strikes’ की कमान भी बिपिन रावत ने ही संभाली थी.

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