अमरीका में नौकरियों की बहार आई हुई है। सितंबर महीने में 3,12,000 नए लोगों को नौकरियां मिलीं, लेकिन अक्तूबर में यह संख्या और बढ़ गई है। पिछले महीने 5,31,000 नए लोगों को नौकरियां मिली हैं। यह जानकारी वहां के श्रम मंत्रालय ने दी है।
अमरीका का श्रम मंत्रालय हर महीने नई नौकरियों और बेरोज़गारी का आंकड़ा देता है। वहां पर बेरोज़गारी लगातार घटती जा रही है। सितंबर और अक्तूबर के बीच 4.8 प्रतिशत से घट कर 4.6 प्रतिशत हो गई है। इसी के साथ पगार और मज़दूरी में भी अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है।भारत में आपको श्रम मंत्रालय इस तरह के आंकड़े नहीं देता है।
भारत में आप इस तरह की चीज़ें नहीं जानते हैं। कुछ और जानते हैं। जैसे प्रधानमंत्री किस तरह भगवान शिव की पूजा करने वाले हैं, मुख्यमंत्री किस तरह दीये जला रहे हैं, एक और मुख्यमंत्री कितने तरह के तीर्थों के दर्शक के सरकारी कार्यक्रम लांच कर रहे हैं।
इन दिनों आप युवा और आपके माता-पिता राजनेताओं के ज़रिए धर्म की बातें ज़्यादा जान रहे हैं। सुबह-शाम उन्हें किसी न किसी मंदिर के कार्यक्रम में देख रहे हैं। हर नेता इस तरह से कर रहा है जैसे लोगों को पहले पूजा-अर्चना नहीं आती थी, अपने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को देखकर सीख रहे हैं।
जबकि समाज में धार्मिकता पहले से व्याप्त है, उसकी विविधता और प्रचुरता असीमित है लेकिन इन नेताओं को देखकर जल्दी ही लोग यक़ीन करेंगे कि पहले कोई पूजा नहीं करने देता था, अब फलाना मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के आने के बाद से पूजा होने लगी है।
नेताओं को पता चल गया है कि जनता के बीच जाना है तो रोज़गार के सवाल को लेकर जाने की ज़रूरत नहीं है। बेशक नौजवान इसी के बारे में पूछेंगे लेकिन अगर वे किसी मंदिर में पूजा करते हुए उसी नौजवान को टीवी के माध्यम से दिखाए जाएँ तो युवा बेरोज़गारी की बात भूल जाएँगे। यह सही भी है। आज भारत के युवा को नेता से नौकरी नहीं चाहिए, वह चाहता है कि नेता पूजा कर दिखाए, दो चार मंत्र बोल कर दिखाए।
रोज़गार से संबंधित किसी आँकड़े की क्या विश्वसनीयता है, किसी को परवाह नहीं है। केंद्र सरकार तो इस तरह के आँकड़े भी नहीं देती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावा कर रहे हैं कि उनके कार्यकाल में साढ़े चार लाख से अधिक सरकारी नौकरियाँ दी गई हैं।
यह कितना सही है यूपी के युवा ही बता सकते हैं। इस दावे की जाँच कैसे की जाए किसी को पता नहीं है। सबसे अच्छी बात है कि यूपी का युवा जानना भी नहीं चाहता है। अगर कोई जानने की कोशिश करे तो उसे उसकी जाति के किसी महापुरुष की याद दिलाएँ, बताएँ कि मूर्ति बन रही है या बन जाएगी।
फिर उसके बाद धर्म के आधार पर बन रहे स्मारकों की याद दिलाएँ। हिन्दी प्रदेश का युवा चाहे कितना भी बेरोज़गार क्यों न हो, उसका चेहरा स्वाभिमान से खिल उठेगा। यह कितनी अच्छी बात है। अगर इस तरह के युवा मिल जाएँ तो राजनीति कितनी आसान हो जाए। दिन भर सत्ता में रहकर मौज कीजिए और किसी ख़ास समय में आरती या पूजा करते हुए दिख जाइये। विज्ञापन दे दीजिए।
हिन्दी प्रदेश के युवाओं ने यही स्वीकार किया है।राजनीति को इस हालात में पहुँचाने के लिए हिन्दी प्रदेश के युवाओं ने बहुत मेहनत की है।क्या किया जा सकता है। इसलिए पूरे समाज में महंगाई के सपोर्टर खुले आम बोलते घूम रहे हैं कि लोगों की कमाई बढ़ी है, यानी लोगों को नौकरी भी मिली है और महंगाई कहां हैं। वाक़ई महंगाई नहीं है।
रविश कुमार