There is no universal definition of terrorism in international politics

अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आतंकवाद की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है. अगर आज तालिबान कश्मीर पर अपना रुख़ भारत के पक्ष में कर ले तो भारत उसे आतंकवादी संगठन नहीं कहेगा और पाकिस्तान तालिबान को इस्लाम का दुश्मन करार देगा. भारत तालिबान को 1996 से 2001 के आईने में नहीं देखेगा और तालिबान भी 2021 में पाकिस्तान का पिछलग्गू बनकर नहीं रहेगा.

देश चलाने के लिए डॉलर चाहिए होता है. डॉलर कंधे पर बंदूक़ लेकर घूमने से नहीं आएगा और न ही पाकिस्तान देगा. उसके पास ख़ुद ही नहीं है. इस्लाम के नाम पर भी कोई नहीं देगा. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का हिस्सा बनना होगा और उसके नियमों को अपनाना होगा.

अफ़ग़ानिस्तान के बैंक ख़ाली हैं. लोगों को सैलरी देने के लिए पैसे नहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय मदद बंद हैं. खाद्यान्न संकट की स्थिति पैदा हो सकती है. पाकिस्तान इस संकट से नहीं निकाल सकता. चीन और रूस भी लंबे समय तक इसकी गारंटी नहीं ले सकते. ऐसे में तालिबान को भारत से भी बात करनी होगी और बाक़ी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में भी फ़िट बैठना होगा. नहीं तो फिर पहाड़ों पर बंदूक़ लेकर घूमते रहना होगा.

संयुक्त राष्ट्र तालिबान को मान्यता देगा तो भारत अकेले झंडा उठाकर नहीं रह सकता. भारत अमेरिका नहीं है. अफ़ग़ानिस्तान मामले में भारत अभी वही करेगा जो अमेरिका करेगा.

रजनीश कुमार (BBC हिन्दी )

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