पारिवारिक रिश्तों मे उलझी कहानी है “रेशमा”
रेश्मा सूनी सूनी आंखों से सबको तकती रहती।
उसका ख़ुश मिज़ाज लहजा बदल रहा था हर छोटी बड़ी चीज़ उसकी चिढ़ बन जाता और बहुत बार झल्लाहट से वो चिल्ला पड़ती अपने छोटे बड़े भाईयों – बहनों पर जो उम्र में उससे बड़े भी हैं और छोटे भी हैं।
बड़े भाई बहनों की अपनी ज़िन्दगी और अपनी परेशानियां हैं जिनमें वो हर वक़्त मुब्तिला रहते हैं और अपने मन के भाव रेश्मा से शेयर कर पाना मुमकिन नहीं क्यूँ कि इससे वो असभ्य दिखेगी और इतना साहस भी उसमें नहीं की बड़े भाई बहन को अपने मन की सभी बातें वो बता सके।
उस के उम्र में बढ़ोतरी के साथ उसके जज़्बात भी बदल रहे हैं और छोटे भाई बहन समझने में सक्षम नहीं।
सोहल्वा साल
असल में रेश्मा को सुनने में किसी को रूचि नहीं। रेश्मा चाहती है कि वह बताये कि उसे अपने 16 वें साल में एक लड़के के प्रति आकर्षण महसूस हुआ है। उसे नहीं मालूम है कि यह स्वाभाविक है उसकी उम्र में और ना उसे कोई यह बताने वाला।
उसे बड़ा अलग अह्सास हो रहा है वो चाहती है इस नए एहसास की वह ख़ुशी मनाए।
जताए, दिखाए, मनाए इस नए भाव को।
मगर वो बहुत बहुत बार b कहते कहते सोच में पड़ जाती है और उसकी सोच की वह बेड़ियां उसे ऐसा करने से रोकती हैं। जिस कारणवश वह बंधन महसूस करती है या यूं कहें कि वह अस्वतंत्र महसूस करती है। इसके मूल कारण उसके ज़हन और समझ से परे हैं।
वह अंदर ही अंदर कुढ़ती है और मन ही मन मंसूबे रचती है कि किसी तरह वो उन बंधनों को तोड़ कर अपने भावों को लेकर किसी ऐसे व्यक्ती के पास जाए जो उसे केवल सुनें और उसकी ख़ुशी को दोगुना करे।
पढ़ाई से उसका मन ऊबने लगा
वह नवीं कक्षा पास कर 10 वीं में पहुंच चुकी है मगर उसका मन अब पढ़ाई से विचलित होने लगा वो केवल उस लड़के के प्रति और गहरा आकर्षण महसूस करती है और पढ़ाई से उसका मन ऊबने लगता है।
एक दिन उसकी सहेली फरहा से वो अपने मन की बात कहने की कोशिश करती है लेकिन उससे पहले उसकी सहेली बताती है कि उसका एक male cousin है जिस से वह अपने मन की सारी बातें करती है।
जो उसी की उम्र का है और कभी कभी वो फरहा जिससे आकर्षित है उस तक उसकी सारी बातें पहुंचाने में उसकी मदद करता है… जब वो यह सारी बातें रेश्मा को बता रही थी उसकी आंखों में वह चमक उसे ख़लने लगी थी और रेश्मा अपने भीतर एक द्वेष पैदा हुआ जिससे वह यह फ़ैसला नहीं कर पा रही थी कि वह फरहा की बातें सुनकर ख़ुशी महसूस करे या उस के इस #Privilege पर उससे जले।
अपने ही अंतर्द्वंद्व से लड़ने के बाद अंत में उसने ख़ुश होना चुना और वो #jealousy वाले भाव को अपने भीतर कहीं मार दिया था।
लेकिन क्या वह सच में मर गया था ?
शायद नहीं इस #jealousy ने उसके मन में #हीनभावना के रूप जन्म लिया। और वह सदा के लिये इस भाव से घिरी रही कि काश! उसके पास भी एक #Male_Cousine होता जिससे वह सारी बातें उसके मन की, अच्छी-बुरी, बड़ी – छोटी, दुखभरी- सुखभरी, ग़लत-सही बात कर सकती। ताकि जब वह उससे बात करती तो उसे किसी भी बंधन का एहसास ना होता और बेझिझक अपने मन के भाव उढ़ेल देती।
मगर…………..