भले ही आज हम नैशनल डॉक्टर डे मना रहे है लेकिन कोरोना से करोड़ों लोगों को जान बचाने वाले डॉक्टर ही असुरक्षा के माहौल में काम कर रहे हैं. देश में कोरोना मे अब तक 1550 डॉक्टर अपनी जान गवा चुके है लेकिन इनमें से ज्यादातर के परिवारों को 50 लाख रुपये के बीमा का लाभ नहीं मिल पाया है.
Indian Medical Association के अध्यक्ष डॉ. जे.ए. जयालाल ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर में जान गंवाने वाले एक भी डॉक्टर के परिजनों को अब तक बीमा योजना के तहत 50 लाख रुपये का मुआवजा नहीं मिला है. जबकि एक साल पहले कोरोना की पहली लहर में मृत डॉक्टरों में महज 25 फीसदी के परिवारों को यह राशि मिल पाई है.
दरअसल सरकार ने बीमा योजना (50 Lacs Health Insurance Scheme Healthcare Workers) में जो सेवा शर्तें रखी हैं, उनसे ज्यादातर मुआवजा पाने की दावेदारी से ही बाहर हो गए हैं. डॉ. जयालाल का कहना है कि शर्तों के मुताबिक, डॉक्टर की मौत कोविड के लिए मान्यता प्राप्त सरकारी केंद्र में काम करते हुई होनी चाहिए.
होम आइसोलेशन, कोविड के निजी संस्थानों या अन्य केंद्रों पर काम करते वक्त जान गंवाने वाले डॉक्टर इस दायरे में नहीं आते. कागजी दस्तावेजों के कारण भी मुआवजे के लिए पीड़ित परिवार भटक रहे हैं. ऐसे डॉक्टरों की मौत पर सारे रिकॉर्ड अस्पताल और संबद्ध डॉक्टर के परिवार के जरिये जिला प्रशासन को, वहां से राज्य सरकार को, वहां से केंद्र को भेजे जाते हैं.
अगर जरा सी हस्ताक्षर की भी गड़बड़ी हो गई तो आवेदन खारिज हो गया. IMA अपनी ओर से 10 लाख रुपये की मदद दे रही है.
सरकार सीधे तोर पर मुआवजा देती तो अच्छा था
IMA प्रेसिडेंट के मुताबिक, थर्ड पार्टी बीमा की जगह सरकार सीधे तौर पर डॉक्टरों की मौत पर मुआवजे का ऐलान करती तो ये परेशानियां नहीं होतीं. दिल्ली समेत कई राज्यों ने ऐसा किया भी. अकेले दिल्ली और बिहार प्रत्येक में 115 डॉक्टरों की मौत हुई है.
जबकि 8 गर्भवती महिला डॉक्टरों ने दम तोड़ा है. डॉ. जयालाल ने कहा कि इनमें ज्यादातर सरकारी डॉक्टरों की मौत हुई है और पीड़ित परिवारों के चिकित्सकों को सीधी मदद के लिए आईएमए ने हेल्थ सेक्रेटरी से मुलाकात की थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.