एक बार फिर जनसंख्या कम करने के नाम पर टू चाइल्ड पॉलिसी ख़बरों में आने लगा है! असल में इसके पीछे की असली मंशा कुछ है! बहुसंख्यक हिन्दुओं के दिमाग़ में ये बात भूसे की तरह भर दी गयी है कि भारत की जनसंख्या मुसलमानों की वजह से बढ़ रही है और ऐसे रहा तो अगले कुछ सालों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो जायेंगे! इसलिए ऐसी नीति के पीछे नफरती मंशा छिपी होती है!
जबकि सच ये है कि 2001 में मुस्लिमो में प्रजनन दर 4.1 बच्चे प्रति महिला थी! जो 2011 में ये तेज़ी से घटकर 2.7 बच्चे प्रति महिला आ गया! वहीं हिन्दुओं में ये 3.1 से घटकर 2.1 हो गया! घटने की दर मुसलमानों से ज़्यादा तेज़ रहा! 2021 की जनगणना में हिन्दू मुसलमान दोनों ‘हम दो हमारे दो’ के स्तर पर आ चुके होंगे!
अब सरकार को क्या करना चाहिए?
सबसे पहले वन चाइल्ड या टू चाइल्ड पालिसी की बकवास सोच को छोड़ दे! और ग़रीबी या बेरोज़गारी के लिए ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए न कि दोष अधिक जनसंख्या पे मढ़ देना!
पूरी दुनिया में जहाँ भी ग़रीबी नहीं है अथवा बहुत कम है और बेहतर महिला साक्षरता है, वहाँ प्रजनन दर कम है! भले ही वो मुस्लिम बाहुल्य देश हों! उदाहरण: तुर्की, ब्रूनेई, क़तर, मालदीव, मलेशिया, बहरीन, कुवैत, UAE, लेबनान, ईरान, बोसनिया-हर्ज़ेगोविना, अज़र्बेजान! इनमें से सब इस्लामिस्ट देश हैं लेकिन सबकी प्रजनन दर भारत से कम है और ‘हम दो हमारे दो’ वाले स्तर से भी कम है! अर्थात धर्म नहीं तय करता कि कितने बच्चे कौन पैदा करेगा बल्कि ग़रीबी, अशिक्षा, बेरोज़गारी तय करती हैं!
भारत में ही देख लो! प्रजनन दर उन राज्यों में 2 बच्चा/महिला से भी नीचे है जहाँ लड़कियाँ औसतन ग्रेजुएशन से अधिक पढ़ी-लिखी हैं! उदाहरण के लिए बिहार में प्रजनन दर 3.2 बच्चे हैं जहाँ महिलाओं की निरक्षरता दर सबसे अधिक है (26.8%) जबकि केरल जहाँ यही 1.7 बच्चे प्रति/विवाहित जोड़ा है और महिलाओं में साक्षरता दर 99.3% है!
साथ में सेक्स एजुकेशन को बढ़ावा देना होगा ताकि लोग ‘एक्सीडेंटल बर्थ’ के बजाय ‘प्लांड बर्थ’ को अपनायें!
जेंडर-संवेदनशीलता के प्रयास युद्ध स्तर पर हों ताकि लोग बेटे की चाहत में अधिक बच्चे पैदा न करें!
शादी की न्यूनतम उम्र को भी थोड़ा और बढ़ाया जा सकता है!
महिलाओं को reproductive राइट्स, फैमिली प्लानिंग में अधिक निर्णय-निर्माण स्वतंत्रता मिले ताकि वो फैमिली में बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं समझी जाएँ
और अधिक जनसंख्या को अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ देकर उसे बोझ के बजाय संसाधन में बदलना होगा!
इसलिए शाखा में मिले ज्ञान से बाहर निकलो और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी पर फैलाए जा रहे झूठ से बचिए!
क्रेडिट – तारा शंकर (PhD JNU)