क्यों और कैसे ?
ऐसे भी डॉ हर्षवर्धन का काम प्रधानमंत्री का ट्वीट री ट्वीट करना है और उनको दिन भर योद्धा बताने का ट्वीट करना है। यह काम डॉ हर्षवर्धन घर बैठ कर भी कर सकते हैं। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्री होना ज़रूरी नहीं है।
एक डॉ स्वास्थ्य मंत्री को क्या करना चाहिए?
उसके पास कई दर्जन डाक्टरों की एक टीम होनी चाहिए जो कोविड के मरीज़ों का इलाज कर रहे सभी डाक्टरों के प्रेस्किप्शन का अध्ययन करती रहे। बेशक लाखों प्रेसक्रिप्शन का अध्ययन संभव नहीं है लेकिन कई सौ प्रेसक्रिप्शन का अध्ययन हर दिन किया जा सकता है। इससे टीम को पता चलेगा कि छपरा से लेकर दिल्ली तक के तमाम डाक्टर किस तरह इलाज कर रहे हैं।
किस स्टेज पर कौन सी दवा दे रहे हैं और कौन सी दवा नहीं दे रहे हैं। इसकी वजह से किस तरह के मरीज़ को अस्पताल जाना पड़ा और अगर दवा दी जाती तो अस्पताल नहीं जाना पड़ता।
हमें इस वक़्त यह जानना ही होगा कि क्यों इतने मरीज़ अस्पताल जा रहे हैं? उनके डाक्टर ने सही दवा नहीं दी या दी तो देर से दी? क्या कोई ऐसी देरी हो रही है जिसकी वजह से मरीज़ की हालत बिगड़ रही है?
ऐसा लगता है कि सभी डाक्टर अलग अलग तरीक़े से इलाज कर रहे हैं। सरकार ने इलाज के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया है लेकिन वो कारगर नहीं लग रहा है। उसका भी अध्ययन होना चाहिए कि इस प्रोटोकॉल के फोलो करने के बाद भी मरीज़ को अस्पताल तक क्यों जाना पड़ा?
कुछ मरीज़ तो जाएँगे अस्पताल लेकिन इस तरह भगदड़ नहीं मचनी चाहिए।प्रोटोकॉल बनाने वाली टीम को अहंकार छोड़ कर काम करना चाहिए। इलाज करने वाले डाक्टरों से बात कर उनकी कमियों को समझें और गाइड करें।
सरकार ने कोविड को सँभालने के लिए जिन डॉक्टरों की टीम बनाई है उसे स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन के साथ साथ बर्खास्त कर दे। नए डॉक्टरों की टीम लाई जाए जिनका कोई अपना हित न हो। जो दिन भर इसी बात से सीना फुलाए न घूमें कि प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग हो रही है। बल्कि इलाज के पैटर्न पर निगाह रहें। देखें कि किस शहर के डाक्टर इलाज में गड़बड़ी कर रहे हैं।
क्या गड़बड़ी कर रहे हैं। अगर वो न करें तो कई मरीज़ अस्पताल नहीं जाते। इन सब बातों की लिस्ट तैयार करें, अख़बार में छापें। दूरदर्शन रेडियो पर जाकर लगातार संचार करें। डाक्टरों की संस्था के ज़रिए डाक्टरों से संवाद करें। दवाओं की लिस्ट बनाएँ ताकि दवा हर ज़िले में उपलब्ध हो।
इस बात का रियल टाइम डेटा होना चाहिए कि अस्पतालों में जितने मरीज़ आ रहे हैं उनमें से कितने लक्षण आने के पाँच दिन के भीतर आ रहे हैं, छह दिन के भीतर आ रहे हैं या नौ दिन के भीतर आ रहे हैं। उनकी हालत क्यों बिगड़ी है? उनके आने की वजह क्या है?
क्या किसी डाक्टर ने अलग दवा लिखी, क्या किसी डॉक्टर ने जजमेंट ग़लत किया और सही दवा सही समय पर नहीं लिखी या किसी डाक्टर ने पहले ही दिन से पचास दवाएँ तो लिख दीं लेकिन जो सबसे ज़रूरी दवा है उसे देने में या तो देरी कर दी या फिर दी ही नहीं? इससे हमें पता चल जाएगा कि क्या नहीं करना है। अगर यही जानकारी सारे डाक्टरों को किसी कमांड सेंटर से दी जाए तो स्थिति सँभाली जा सकती है।
मेरी राय में यह संकट कोविड के मरीज़ों का इलाज कर रहे डाक्टरों की समझ में कमी के कारण भी है। कई डाक्टरों को अहम दवाओं का पता नहीं है। पता है तो पर्ची में नहीं लिखा नहीं है। इसका मतलब है कि डाक्टर अपनी मर्ज़ी से लिख रहे हैं या नहीं लिख रहे हैं।
इसलिए डाक्टरों के बीच आपसी संवाद बहुत ज़रूरी है। वो मंत्री के ज़रिए न हो। वो हमारे जैसे लोगों के ज़रिए न हो बल्कि उनकी दुनिया के लोग आपस में बात करें कि किसका इलाज क्यों कारगर रहा, किसका इलाज क्यों कारगर नहीं रहा।
इसके लिए डाक्टरों का एक कमांड सेंटर बनना चाहिए।
ऐसा कमांड सेंटर बन जाना चाहिए था। इसके सुझाव दिए गए हैं। मुझे याद है मेरे ही शो में डॉ मैथ्यू वर्गीज़ ने ऐसे किसी कमांड सेंटर की बात की थी। यह कमांड सेंटर हर दिन के इलाज के पैटर्न और उसकी सफलता का ज्ञान केंद्र होना चाहिए।
जहां किसी क़स्बे का डाक्टर सीधे फ़ोन कर सलाह ले कि उसके पास इस प्रकृति का मरीज़ है। उसे ऐसी दवा देने से फ़ायदा हो रहा है या क्या और बेहतर कर सकता है? अगर ऐसा कमांड सेंटर बना होता तो ऐसे डाक्टरों रिपोर्ट और प्रेसक्रिप्शन कमांड सेंटर भेजते। वहाँ रिसर्च टीम अध्ययन करती।
इस वक़्त सबसे ज़रूरी है कि कोविड का इलाज कर रहे सारे डाक्टरों को एक पेज पर लाया जाए। ताकि बहुत अच्छे, अच्छे और औसत हर तरह के डाक्टर मिल कर इलाज करें और मरीज़ों को अस्पताल जाने से रोकें।
लोगों की जान बचेगी। इसके लिए ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री जो ख़ुद तो इस्तीफ़ा तो देंगे नहीं इसलिए वे अपने स्वास्थ्य मंत्री को हटा दें। मेरी बात मान लें। लाखों लोगों की जान बच सकती है। गोदी मीडिया के एंकरों के चक्कर में लोगों की जान मत जाने दीजिए। आगे आपकी मर्ज़ी।
प्रधानमंत्री जी आप दुनिया का सारा चुनाव जीतते रहें। धरती पर जहां भी चुनाव हो आप ही जीतें। बल्कि बीच बीच में आप किसी यूनिवर्सिटी के छात्र संघ का भी चुनाव लड़ लीडिए ताकि आप हर दिन कोई न कोई चुनाव जीतते रहें।
कभी देश में संकट हो तो मुखिया का नामिनेशन भर दीजिए और वहाँ प्रचार शुरू कर दीजिए। बाक़ी लोग आक्सीजन के लिए मरते रहें। वेंटिलेटर के लिए मरते रहें। एंबुलेंस के लिए मरते रहें। उसकी चिन्ता न करें। हेडलाइन मैनेज करने वाले अपना काम कर ही रहे होंगे।
source Ravish kumar