सैकड़ों सालों तक जिनने भारत पर राज किया, जिनकी आबादी ने ख़तरा बताने का काज किया. जिनके पढ़ने, लिखने, राष्ट्रपति बनने से ज़्यादा जेहादी बनने के किस्से सुनाए गए. जिनके ख़ून देने से ज़्यादा थूकने के न्यूज पैकेज बनाए गए.
जो अपनी ही जालीदार टोपी में फँसाए दिए जा रहे. जो मन, मेहनत से नहीं… कपड़ों से पहचान दिए गए. जिनके जूते, लाठी खाते मुंह से कराहती आवाज़ में जय श्री राम, जन गण मन सुनाई दे. हत्या, रेप, दंगों जैसी ख़बरों की हैडिंग में जिनके नाम दिखाई दें.
ये सब करके भी जो अल्पसंख्यक बने रहे, अब वही हिंदुओं के लिए ख़तरा कहलाते हैं. कोई पूछे तो खुद को मुसलमां बताते हैं. कहीं रामलीला में जो खुद खुशी खुशी राम बनते हैं, उसी राम नाम पर कुछ की करतूतों के चलते किस्सा-ए-तमाम बनते हैं.
नई परिभाषा में कोई और नहीं, अब यही मुसलमान खतरनाक कहलाते हैं. वो नहीं जो भगवा पहनकर, जबरन जय श्री राम बुलवाते हैं. ना ही वो जो कातिलों की पीठ सहलाते हैं और हर हत्यारे को जो गले लगाते हैं.
अब चूड़ी बेचने वालों से डरने के दिन आ गए? फ्रिज सूंघकर कुछ को कुछ बताने के दिन छा गए? कश्मीरी पंडित, गोधरा और अनगिनत हिंदू नामों के जो गलत हुआ, वैसा ही मुसलमानों के साथ जायज़ ठहराते मन तुमको भा गए?
क्या फर्क रहा उनमें, जो तुम्हारे हिसाब से खतरा हैं? या बन गए वैसे ही ”बुद्धिजीवी” जो एक धर्म के गलत को गलत कहते हैं, दूजे को देख सब चुप सहते हैं? बँटवारे की तारीख़ अब अगस्त 1947 नहीं रह गई. अब हर रोज़ बँटवारा है. यकीन नहीं होता कि ये मुल्क हमारा है?
Vikas Trivedi